Vasudev Sutam De
Vasudev Sutam De
यह श्री शंकर भगवत्पाद द्वारा लिखित मूल कृष्णाष्टकम है, यह स्तोत्रं "वासुदेव-सुतम देवम" से शुरू नहीं होता है। 'वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् । देवकीपरमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्' एक संस्कृत श्लोक है। जिसका हिंदी में अर्थ होता है कि “ वसुदेव के पुत्र, कंस, चाणूर का मर्दन करने वाले, देवकी को परमानंद देने वाले और समस्त संसार के स्वामी श्री कृष्ण को मैं नमन करता हूं।” और यह शंकरग्रंथावली के खंड 17 और 18 में आचार्य के स्तोत्र-ग्रंथ शामिल हैं ।
वसुदेवसुतं देवं
स्तोत्रं : | वसुदेवसुतं देवं |
लेखक : | आदि गुरु शंकराचार्य |
स्तोत्रं : वसुदेवसुतं देवं
वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्
देवकीपरमानन्दं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् || १ ||
आतसीपुष्पसंकाशम् हारनूपुरशोभितम्
रत्नकण्कणकेयूरं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् || २ ||
कुटिलालकसंयुक्तं पूर्णचंद्रनिभाननम्
विलसत्कुण्डलधरं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् || ३ ||
मंदारगन्धसंयुक्तं चारुहासं चतुर्भुजम्
बर्हिपिञ्छावचूडाङ्गं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् || ४ ||
उत्फुल्लपद्मपत्राक्षं नीलजीमूतसन्निभम्
यादवानां शिरोरत्नं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् || ५ ||
रुक्मिणीकेळिसंयुक्तं पीतांबरसुशोभितम्
अवाप्ततुलसीगन्धं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् || ६ ||
गोपिकानां कुचद्वन्द्व कुंकुमाङ्कितवक्षसम्
श्री निकेतं महेष्वासं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् || ७ ||
श्रीवत्साङ्कं महोरस्कं वनमालाविराजितम्
शङ्खचक्रधरं देवं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् || ८ ||
कृष्णाष्टकमिदं पुण्यं प्रातरुत्थाय यः पठेत् |
कोटिजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनष्यति ||
|| इति कृष्णाष्टकम् ||