Sukhkarta Dukhharta । Jai Dev Jai Dev Aarti Lyrics। सुखकर्ता दुखहर्ता वार्ता विघ्नांची

Sukhkarta Dukhharta । Jai Dev Jai Dev Aarti Lyrics। सुखकर्ता दुखहर्ता वार्ता विघ्नांची

सुखकर्ता दुखहर्ता गणेश जी की बहुत ही लोकप्रिय मराठी आरती है, इस आरती को महाराष्ट्र के प्रसिद्ध सन्त समर्थ रामदास जी ने मयूरेश्वर (अष्टविनायक, मोरगांव) से प्रेरित होकर इस आरती की रचना कीसुखकर्ता दुखहर्ता का शाब्दिक अर्थ खुशियों को फैलाने वाला और संकटों को हरने वाला है । यह गणेश आरती गणेश चतुर्थी के सिर्फ़ विशेष अवसर पर ही नहीं बल्कि प्रत्येक गणेश पूजन और मंदिरो मे नियमित रूप से गायी जाती है, इसके नियमित पाठ से भक्त अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति का मार्ग प्राप्त कर सकते हैं।


sukh karta dukh harta aarti lyrics

Sukhkarta Dukhharta Aarti Details

Aarti:Sukhkarta Dukhharta
composed:Sant Samarth Ramdas JI
Singer:Sanjeevani Bhelande
Music:Surinder Sodhi
Lable:Rajshri Entertainment Pvt Ltd

Read in – English / हिन्दी

Aarti Lyrics – Sukhkarta Dukhharta lyrics (सुखकर्ता दुखहर्ता)

सुख कर्ता दुख हर्ता वार्ता विघनांची,
नूरवी पूरवी प्रेम कृपा जयाची ।

सर्वांगी सुंदर उटी शेंदुराची,
कंठी झटके माळ मुक्ताफाळांची ॥1॥

जय देव जय देव

जय देव, जय देव जय मंगलमूर्ति ।
दर्शनमात्रे मन कामना पूर्ति ।
जय देव जय देव।।

रत्नखचित फरा तुज गौरीकुमरा,
चंदनाची उटी कुमकुम केशरा ।

हिरेजडित मुकुट शोभतो बरा,
रुणझुणती नूपुरे चरणी घागरिया ।।2।।

जय देव जय देव

जय देव, जय देव जय मंगलमूर्ति ।
दर्शनमात्रे मन कामना पूर्ति ।
जय देव जय देव।।

लंबोदर पीतांबर फणिवरबंधना,
सरळ सोंड वक्रतुंड त्रिनयना ।

दास रामाचा वाट पाहे सदना,
संकटी पावावे निर्वाणी रक्षावे सुरवरवंदना
।।3।।

जय देव जय देव

जय देव, जय देव जय मंगलमूर्ति ।
दर्शनमात्रे मन कामना पूर्ति ।
जय देव जय देव।।


शेंदुर लाल चढ़ायो – SHENDUR LAL CHADHAYO LYRICS

।। श्री गणेशाची आरती ।।

शेंदुर लाल चढ़ायो अच्छा गजमुख को,
दोंदिल लाल बिराजे सुत गौरिहर को ।

हाथ लिए गुडलद्दु सांई सुरवर को,
महिमा कहे न जाय लागत हूं पद को ।।1।।

।। जय देव जय देव ।।
जय जय श्री गणराज विद्या सुखदाता ।
धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मन रमता ।।
।। जय देव जय देव ।।

अष्टौ सिद्धि दासी संकटको बैरि,
विघ्नविनाशन मंगल मूरत अधिकारी।

कोटीसूरजप्रकाश ऐसी छबि तेरी,
गंडस्थलमदमस्तक झूले शशिबिहारि ॥2॥

।। जय देव जय देव ।।
जय जय श्री गणराज विद्या सुखदाता ।
धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मन रमता ।।
।। जय देव जय देव ।।

भावभगत से कोई शरणागत आवे,
संतत संपत
सबहि भरपूर पावे ।

ऐसे तुम महाराज मोको अति भावे,
गोसावीनंदन निशिदिन गुण गावे ।।3।।

।। जय देव जय देव ।।
जय जय श्री गणराज विद्या सुखदाता ।
धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मन रमता ।।
।। जय देव जय देव ।।

घालीन लोटांगण वंदिन चरन,
डोळ्यांनी पाहीं रुप तुझे ।

प्रेम आलिंगिन आनंदे पूजीं,
भावे ओवालीन म्हणे नामा ।।

त्वमेव माता पिता त्वमेव,
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।

त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव,
त्वमेव सर्वम मम देव देव ।।

कयें वच मनसेन्द्रियैवा,
बुद्धयात्मना व प्रकृतिस्वभावा ।

करोमि यद्यत सकलं परस्मै,
नारायणायेति समर्पयामि ।।

अच्युत केशवम रामनरायणं,
कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरी ।

श्रीधरम माधवं गोपिकावल्लभं,
जानकीनायकं रामचंद्रम भजे ।।

हरे राम हरे राम,
राम राम हरे हरे ।

हरे कृष्णा हरे कृष्णा,
कृष्णा कृष्णा हरे हरे ।।

Sukhkarta Dukhharta। Jai Dev Jai Dev

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